महामृत्युंजय मंत्र भगवान शिव का बहुत प्रिय मंत्र है। प्रत्येक सोमवार को 108 जाप करने से कुंडली मे स्थित कालसर्प योग समाप्त हो जाता है। आप इस फोटो को अपने मोबाइल मे डाउनलोड कर ले ।
Hindu religious vedic vichar manch in Hindi
Saturday, August 22, 2020
Saturday, August 15, 2020
Wednesday, August 12, 2020
Community post copyright free photo reuse allowed
सनातन धर्म के प्रचार प्रसार हेतु हमारे ब्लॉग के सभी फोटो कॉपीराइट फ्री है, आप डाउनलोड कर के पुनः प्रयोग कर सकते है।
----------------------------------------------------- तुलसीदास जी की चौपईया कबीर वाणी महाभारत के प्रसंग एक चोर से धन कुबेर महाराज बनने की कहानी श्री कृष्ण स्तुति मनुष्य और पशु मे क्या अंतर है भगवान पर रखो भरोसा, बुरा वक्त आएगा ही नहीं। हनुमान जी लाए थे लंका से 84 कसौटी पत्थर स्तंभTuesday, August 11, 2020
श्रीमद भागवत गीता के श्लोक पेज - 1
श्रीमद भागवत गीता के श्लोक
गीता सारपरित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे॥4.8।।
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन । मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ॥2.47।।
वांसासि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोSपराणि | तथा शरीराणि विहाय जीर्णा - न्यन्यानि संयाति नवानि देहि || २२ ||
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।।18.66।।
श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः। ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति।।4.39।।
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत | अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् || 7||
हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्। तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः।।2.37।।
ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते। सङ्गात् संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते।।2.62।। क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः। स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।।2.63।।
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:। श्रीमद भागवत गीता के श्लोक पेज - 1 श्रीमद भागवत गीता के श्लोक पेज - 2
Monday, August 10, 2020
Thursday, August 6, 2020
Wednesday, August 5, 2020
Monday, August 3, 2020
Sunday, August 2, 2020
Monday, July 27, 2020
सनातन धर्म के प्रहरी - भाई जी हनुमान प्रसाद पोद्दार
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी का जन्म असम के शिलॉग मे 17 सितम्बर 1892 को एक मध्यमवर्गीय मारवाड़ी परिवार मे हुआ था। इनके पिता जी लाला भीमराज अग्रवाल और माता जी रिखीबाई राजस्थान के रतनगढ़ के रहने वाले थे। इनके जन्म के दो महीने बाद ही इनकी माता जी का स्वर्गवास हो गया। इनका पालन- पोषण इनकी दादी जी रामकौर देवी ने किया। इनकी दीदी जी हनुमान जी भक्त थी इसीलिए इनका नाम हनुमान प्रसाद रख दिया। इनकी दादी जी धार्मिक प्रवृत्ति की थी इसलिए इनको धार्मिक संस्कार बचपन मे ही घर से ही मिल गए। लोग इन्हे प्यार से भाई जी कहकर भी बुलाते हैं।
दीक्षा :--
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी को निंबार्क संप्रदाय के संत ब्रजदास जी ने दीक्षा दी थी। जो की बरसाना के रहने वाले थे।
असम का भूकंप :--
जब भाई जी 4 साल के थे तभी शिलांग में भयानक भूकंप आया था। जिस स्थान पर हनुमान प्रसाद जी थे वहां पर भूकंप के दौरान ईंट पत्थर गिरने लगे । इनके ऊपर एक तखत आ कर गिर गया और ये उस तखत के नीचे आ गए, जिससे इनकी जान बच गयी। हनुमान प्रसाद जी को खरोंच तक नहीं आई जबकि उनके 2 फुफेरे भाइयों कि उसी शिला के नीचे दबने से मौत हो गई। इस भूकंप का इनके जीवन पर बड़ा असर हुआ , उनको ऐसा महसूस हुआ की भगवान ने उनकी जान बचाई है। भगवान उनसे कोई बड़ा काम करवाना चाहते है।
भाई जी स्वतंत्रता सेनानी के रूप मे :-
1912 में वे अपना पुश्तैनी कारोबार सँभालने के लिए कलकत्ता आ गये, कलकत्ता में मात्र 13 वर्ष की आयु में भाईजी हनुमान प्रसाद पोद्दार जी ने अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचारों के खिलाफ विद्रोह कर दिया । 19 जुलाई 1905 में लार्ड कर्जन द्वारा बंग भंग की घोषणा के बाद जब मां भारती के सपूतों ने विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का निर्णय लिया तो इस आंदोलन के साथ भाईजी भी जुड़ गए। 16 जुलाई 1914 को उन्हें तीन साथियों सहित राष्ट्रद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। भाईजी के जीवन की शुरुआत स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदारी से हुई। उनमें देशप्रेम कूट-कूट कर भरा था। स्वतंत्रता आंदोलन में वह जेल भी गए। परिवार की खराब आर्थिक स्थिति व अंग्रेजी हुकूमत की धमकियां भी उन्हें विचलित नहीं कर पाई। इस प्रकार बाल्यावस्था मे ही स्वदेशी व्रत ले लिया और फिर जीवन भर उसका पालन किया। केवल उन्होंने ही नहीं, तो उनकी पत्नी ने भी इस व्रत को निभाया और घर की सब विदेशी वस्तुओं की होली जला दी।
संपादक का पदभार :--
1914 में उनका सम्पर्क महामना मदनमोहन मालवीय जी से हुआ ,महामना पंडित मदन मोहन मालवीय बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए धन संग्रह करने के उद्देश्य से कलकत्ता आए तो पोद्दार जी ने कई लोगों से मिलकर इस कार्य के लिए दान-राशि दिलवाई। 1926 में मारवाड़ी अग्रवाल महासभा का अधिवेशन दिल्ली में था सेठ जमनालाल बजाज अधिवेशन के सभापति थे। इस अवसर पर सेठ घनश्यामदास बिड़ला भी मौजूद थे। बिड़ला जी ने भाई जी द्वारा गीता के प्रचार-प्रसार के लिए किए जा रहे कार्यों की सराहना करते हुए उनसे आग्रह किया कि सनातन धर्म के प्रचार और सद विचारों को लोगों तक पहुँचाने के लिए एक संपूर्ण पत्रिका का प्रकाशन होना चाहिए। बिड़ला जी के इन्हीं वाक्यों ने भाई जी को ‘कल्याण’ नाम की पत्रिका के प्रकाशन के लिए प्रेरित किया। 1918 में भाई जी व्यापार के लिए मुम्बई आ गये। यहाँ सेठ जयदयाल गोयन्दका के सहयोग से अगस्त, 1926 में धर्मप्रधान विचारों पर आधारित ‘कल्याण’ नामक मासिक पत्रिका प्रारम्भ की। कल्याण तेरह माह तक मुंबई से प्रकाशित होती रही। इसके बाद अगस्त 1926 से गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित होने लगी . इसके बाद “कल्याण” भारतीय परिवारों के बीच एक लोकप्रिय संपूर्ण पत्रिका के रुप में स्थापित हो गई और आज भी धार्मिक जागरण में कल्याण एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।कल्याण मासिक पत्रिका पर महात्मा गांधी की सीख :--
कल्याण के प्रकाशित होने से पहले पोद्दार जी की मुलाकात गाँधी जी से हुईं। कल्याण के लिए गांधी जी से पोद्दार जी ने आशीर्वाद माँगा, गाँधी जी ने कल्याण में दो नियमों का पालन करने को कहा। एक तो कोई बाहरी विज्ञापन नहीं देना दूसरे, पुस्तकों की समालोचना मत छापना।
अपने इन निर्देशों को ठीक प्रकार से समझाते हुए गांधी जी ने कहा- ‘‘तुम अपनी जान में पहले यह देखकर विज्ञापन लोगे कि वह किसी ऐसी चीज का न हो जो भद्दी हो और जिसमें जनता को धोखा देकर ठगने की बात हो। पर जब तुम्हारे पास विज्ञापन आने लगेंगे और लोग उनके लिए अधिक पैसे देने लगेंगे तब तुम्हारे विरोध करने पर भी…साथी लोग कहेंगे…देखिए इतन पैसा आता है क्यों न विज्ञापन स्वीकार कर लिया जाए?", गाँधी जी का पालन गीताप्रेस ने निरंतर किया।कल्याण मासिक पत्रिका की लोकप्रिता :--
काम लागत मे एक उत्तम कोटि की पत्रिका निकाने के लिये पोद्दार जी रात-दिन मेहनत करते थे। कल्याण क़े आकर को बड़ा रखा गया , श्रेष्ठ कलाकारो द्वारा बनाये गए रंगीन फोटो से सुसज्जित किया गया ,पाढ़य सामग्री को रोचक बनाने क़े लिये देशभर क़े धार्मिक विचारको को पत्र लिखे गए। साथ ही इसका मूल्य भी कम रखा गया। कल्याण पत्रिका क़े अंतिम पेज पर लघु कथा प्रकाशित की जाती थी जिसका शीर्षक होतो था "पढ़ो समझो और करो। ये कहानियाँ इतनी रोचक और लाभप्रद होती थी की पाठक सबके पहले इसे ही पढ़ना पसंद करता थे।
भगवान के दर्शन :--
आध्यात्मिक चिंतन में लीन रहने वाले भाईजी हनुमान प्रसाद पोद्दार चौपाटी स्थितएक बेंच पर बैठकर जप कर रहे थे तभी एक पारसी प्रेत आया। भाईजी ने उसके कहने पर एक ब्राम्हण को गया भेजकर उसका पिंडदान करवाया। तब से वह भाईजी की हरवक्त मदद करता था।- कहते हैं कि 16 सितम्बर 1927 को जसीडीह में 15 लोगों की मौजूदगी में भगवान् विष्णु ने साक्षात भाई जी को दर्शन दिया था। 1936 में गीता वाटिका गोरखपुर में प्रवास के दौरान देवर्षि नारद और महर्षि अंगिरा ने भाईजी को दर्शन दिया था।
सम्मान :--
अंग्रेजों के समय में गोरखपुर में उनकी धर्म एवं साहित्य सेवा और उनकी लोकप्रियता को देखते हुए उस समय के अंग्रेज कलेक्टर पेडले ने उन्हें ‘रायसाहब’ की उपाधि से अलंकृत करनेका प्रस्ताव रखा था, लेकिन पोद्दार जी ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था।
इसके बाद अंग्रेज कमिश्नर होबर्ट ने ‘राय बहादुर’ की उपाधि देने का प्रस्ताव रखा लेकिन पोद्दार जी ने इस प्रस्ताव को भी स्वीकार करने से इंकार कर दिया था।
देश की स्वाधीनता के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू जी की सलाह पर केंद्रीयगृह मंत्री गोविंद बल्लभ पंत ने पोद्दार जी को भारत रत्न की उपाधि से अलंकृत करने का प्रस्ताव रखा गया, परंतु उन्होंने इसमें भी कोई रुचि नहीं दिखाई थी। उसके बाद गोविंद बल्लभ पंत जी ने पोद्दार जी को एक पत्र लिखा, जिस मे लिखा था शायद हम गलत थे, आप भारत रत्न से कही ऊपर है, यह सम्मान तो आप जैसे वयक्ति के लिये तुक्छ है।
हनुमान प्रसाद पोद्दार के सम्मान में डाक टिकट जारी की गई।19 सितम्बर 1992 को हनुमान प्रसाद पोद्दार जी के सम्मान मे भारतीय डाक विभाग ने 1 रुपये मूल्य का एक समारक डाक टिकट जारी किया।
मृत्यु :-
अंतिम समय मे उन्हें कैंसर हो गया, यहाँ उनके उपचार के लिये कैंसर का कोई डॉक्टर नहीं थे, जरुरत पड़ने पर दिल्ली से डॉक्टर आकर देखभाल करते थे। 22 मार्च 1971 को पोद्दार जी का निधन हो गया। उनकी समाधि गीता वाटिका में बनी है और उनकी अस्थियां आज भी उसी तरह से सुरक्षित हैं। जिस कमरे मे उन्होंने प्राण त्यागे वहा निरंतर रामायण पाढ हो रहा है।
हनुमान प्रसाद पोद्दार के नाम पर उद्यान :--
2019 मे गोरखपुर राजकीय उद्यान का नाम बदल कर हनुमान प्रसाद पोद्दार उद्यान कर दिया गया।
Saturday, July 25, 2020
jivan parichay
जीवन परिचय
आदि गुरु शंकराचार्य का जीवन परिचय स्वामी विवेकानंद जी का जीवन परिचय स्वामी दयानंद सरस्वती का जीवन परिचय महर्षि वाल्मीकि का जीवन परिचय मीराबाई का जीवन परिचय
संत कबीर - जीवन परिचय महर्षि रमन - जीवन परिचयगोस्वामी तुलसीदास जी का जीवन परिचय