Wednesday, February 10, 2021

संत कबीर

संत कबीर

"भारी कहूँ तो बहुं डरूं, हरुआ कहूं तो झूठ। 
मैं क्या जानूं राम कौ, नैनां कबहूँ न दीठ।"
भक्ति आन्दोलन अपने समय का प्रगतिशील आन्दोलन था। कबीर दास जी का इससे गहरा सम्बन्ध है। तत्कालीन सामाजिक, धार्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कबीर की विचारधारा स्वतंत्र रूप से गतिशील थी। मानव एकता की स्थापना उनके जीवन का मुख्य लक्ष्य था। उन्होंने जाति पांति तथा भेदभाव की नीति की घोर निंदा की। 
'जांति पांति पूछे नहिं कोई, हरि को भजै सो हरि का होई। '
संत कबीर का जन्म 1440 ई० को वाराणसी के लहरतारा में हुआ था। इनका लालन पालन नीरु और नीमा नामक जुलाहे ने किया था। इनकी शिक्षा दिक्षा गुरु रामानंद के नेतृत्व में हुई। 
कबीर दास भक्ति काल के निर्गुण धारा के ज्ञानमार्गी कवियों में प्रमुख स्थान रखते हैं। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी कहते हैं, 'उनकी भक्ति के गागर से इतना रस छलका कि काव्य की कटोरी भी कम नहीं भरी है।'
कबीर की कविता में न कोई शास्त्रीय व्यवस्था है, न कोई निश्चित रचना शैली, फिर भी उनकी कविता जीवन्त और महत्वपूर्ण है। 
            "रांम भगति अनियाले तीर। 
             जेहि लागै सो जानैं पीर।।"
कबीर के काव्य में भक्ति की पूरी एक प्रक्रिया है, जो तमाम शब्दों के संदर्भ से ईश्वर विषयक ज्ञान को सामने लाती है। साधु की संगति से गुरू की उपलब्धि सबसे पहली पीढ़ी है। गुरु की कृपा से ईश्वर को जानने का मार्ग और साधन पता चलता है। वह गुरु ही है, जो बतलाता है राम नाम का स्मरण, जाप और संकीर्तन ही ईश्वर से परिचय कराता है। स्मरण और जाप, आन्तरिक और मानसिक है।
     तूं तूं करता तूं भया, मुझ में रही न हूं। 
     वारी तेरे नांउं परि, जित देखौं तित तूं।।
कबीर का कृतियाँ व्यापक रुप में लोकोन्मुखी है। डा० श्यामसुंदर दास ने कबीर दास को हिन्दी के श्रेष्ठ रहस्यवादी कवि के रूप में चित्रित किया है। कि, "सभी संत कवियों के काव्य में थोड़ा बहुत रहस्यवाद मिलता है, पर उनका काव्य विशेषकर कबीर का ही ऋणी है। बंगला के कवीन्द्र रवींद्र को भी कबीर का ऋण स्वीकार करना होगा। अपने रहस्यवाद के बीज उन्होंने कबीर मे पाये| सच्चे रहस्यवाद के आविर्भाव के लिए प्रतिभा की अपेक्षा होती तो। कबीर इसी प्रतिभा के कारण सफल हुए हैं। "
हंम न मरैं मरिहै संसारा ।
हंमकौ मिला जीआवनहारा ।।
साकल मरहिं संत जन जीवहिं।
भरि भरि रांम रसांइन पीवहिं।।
साखी, सबद, रमैनी,और बीजक इनकी प्रमुख रचनायें हैं। 
कबीर पढिंबा दूरि करि, पुसतग देहु बहाइ। 
बावन अक्खिर सोधि कै, ररै ममैं चित लाइ।।
लेखन : मिनी 


No comments:

Post a Comment