Friday, January 15, 2021

गोस्वामी तुलसीदास जी का जीवन परिचय


गोस्वामी तुलसीदास जी का नाम लेते ही भगवान श्री राम का स्वरुप सामने आ जाता है। तुलसीदास जी ने ही रामचरित मानस की रचना की तुलसीदास जी का जन्म संवत 1589 को हुआ था। माना जाता है कि तुलसीदास जी का जन्म उत्तर प्रदेश के बॉंदा जिले के राजापुर नाम के एक छोटे से गांव में हुआ था। तुलसीदास जी की माता का नाम हुलसी तथा पिता का नाम आत्माराम दूबे था।

तुलसीदास जी का बचपन बड़े ही दुखों में व्यतीत हुआ था। जब तुलसीदास जी बड़े हुए तो उनका विवाह रत्नावली के साथ हो गया। तुलसीदास जी अपनी पत्नी से बहुत ज्यादा प्रेम करते थे। उन्हें अपने इस प्रे्म के कारण एक बार अपनी पत्नी से अपमानित भी होना पड़ा था। जिसके बारे में कहा जाता है कि " लाज न आई आपको दौरे आएहु नाथ" अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति ता। नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत बीता।। अपनी पत्नी की यह बात सुनकर तुलसीदास जी को बड़ा ही दुख हुआ। जिसके बाद उन्होंने प्रभु श्री राम के चरणों में ही अपने जीवन को व्यतीत कर दिया। तुलसीदास जी ने गुरु बाबा नरहरिदास से भी दीक्षा प्राप्त की थी। इनके जीवन का ज्यादातर समय चित्रकूट, काशी और अयोध्या में व्यतीत हुआ था। तुलसीदास जी ने अपने जीवन पर कई स्थानों का भ्रमण किया था और लोगों को प्रभु श्री राम की महिमा के बारे में बताया था। तुलसीदास जी ने अनेकों ग्रंथ और कृतियों की रचना की थी ।  

संत तुलसीदास ने शुरू की तीर्थ यात्रा

भगवान श्री राम के भक्ति में पूरी तरह से डूबे तुलसीदास ने कई सारी तीर्थ यात्रा की और यह हर समय भगवान श्री राम की ही बातें लोगों से किया करते। संत तुलसीदास ने काशी, अयोध्या और चित्रकूट में ही अपना सारा समय बिताना शुरू कर दिया। इनके अनुसार जब उन्होंने चित्रकूट के अस्सी घाट पर रामचरितमानसको लिखना शुरू की तो उनको श्री हनुमान जी ने दर्शन दिए और उनको राम जी के जीवन के बारे में बताया। तुलसीदास जी ने कई जगहों पर इस बात का भी जिक्र किया हुआ है कि वे कई बार हनुमान जी से मिले थे और एक बार उन्हें भगवान राम के दर्शन भी प्राप्त हुए थे। वहीं तुलसीदास ने भगवान राम के साथ हनुमान जी की भक्ति करने लगे और उन्होंने वाराणसी में भगवान हनुमान के लिए संकटमोचन मंदिर भी बनवाया।

राम दर्शन 

तुलसी दास जी हनुमान की बातों का अनुसरण करते हुए चित्रकूट के रामघाट पर एक आश्रम में रहने लगे और एक दिन कदमगिरी पर्वत की परिक्रमा करने के लिए निकले। माना जाता है वहीं पर उन्हें श्रीराम जी के दर्शन प्राप्त हुए थे। इन सभी घटनाओं का उल्लेख उन्होंने गीतावली में किया है।

तुलसीदास जी द्वारा लिखित ग्रन्थ 

श्री रामचरितमानस, सतसई, बैरव रामायण, पार्वती मंगल, गीतावली, विनय पत्रिका, वैराग्य संदीपनी, रामललानहछू, कृष्ण गीतावली, दोहावली और कवितावली आदि है। तुलसीदास जी ने अपने सभी छन्दों का प्रयोग अपने काव्यों में किया है। 

इनके प्रमुख छंद हैं दोहा सोरठा चौपाई कुंडलिया आदि, इन्होंने शब्दालंकार और अर्थालंकार दोनों का भी प्रयोग अपने काव्यों और ग्रंथो में किया है और इन्होंने सभी रसों का प्रयोग भी अपने काव्यों और ग्रंथों में किया है ,इसीलिए इनके सभी ग्रंथ काफी लोकप्रिय रहे हैं।

लगभग तीन साल में लिखी रामचरितमानस 

भगवान राम जी के जीवन पर आधारित  महाकाव्य रामचरितमानसको पूरा करने में संत तुलसीदास को काफी सारा समय लगा था और इन्होंने इस महाकाव्य को 2 साल 7 महीने और 26 दिन में पूरा किया था। रामचरितमानस में तुलसीदास ने राम जी के पूरे जीवन का वर्णन किया हुआ है। रामचरितमानस के साथ साथ उन्होंने हनुमान चालीसा की भी रचना की हुई है।

संत तुलसीदास जी की मृत्यु

तुलसीदास  के निधन के बारे में कहा जाता है कि इनकी मृत्यु बीमारी के कारण हुई थी और इन्होंने अपने जीवन के अंतिम पल वाराणसी के अस्सी घाट में बिताए थे। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने अपने जीवन के अंतिम समय में विनय-पत्रिका लिखी थी और इस पत्रिका पर भगवान राम ने हस्ताक्षर किए थे। इस पात्रिका को लिखने के बाद तुलसीदास का निधन 1623 में हो गया था।

तुलसीदास के द्वारा लिखी गई रचानाएं और दोहे 

  • ·        रामचरितमानस
  • ·        रामलला नहछू
  • ·        बरवाई रामायण
  • ·        पार्वती मंगल
  • ·        जानकी मंगल
  • ·        रामाज्ञा प्रश्न
  • ·        कृष्णा गीतावली
  • ·        गीतावली
  • ·        साहित्य रत्न
  • ·        दोहावली
  • ·        वैराग्य संदीपनी
  • ·        विनय पत्रिका
  • ·        हनुमान चालीसा
  • ·        हनुमान अष्टक
  • ·        हनुमान बहुक

दोहा-1

दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान, तुलसी दया न छोडिये जब तक घट में प्राण।

भावार्थ - धर्म, दया भावना से उत्पन्न होती और अभिमान तो केवल पाप को ही जन्म देता हैं, मनुष्य के शरीर में जब तक प्राण हैं, तब तक उसे दया भावना कभी नहीं छोड़नी चाहिए।

दोहा-2

सरनागत कहूँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि, ते नर पावॅर पापमय तिन्हहि बिलोकति हानि।

भावार्थ - जो इन्सान अपने अहित का अनुमान करके शरण में आये हुए का त्याग कर देते हैं वे क्षुद्र और पापमय होते हैं। दरअसल, उनको देखना भी उचित नहीं होता।

दोहा-3

मुखिया मुखु सो चाहिये खान पान कहूँ एक, पालड़ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित बिबेक।

लेखन : चांदनी 

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