भारत की भूमि पर बोधि वृक्ष क्यों नहीं पनप पाया
महात्मा गौतम बुद्ध का जन्म ईसापूर्व 563 के लगभग हुआ। बौद्ध ने मानव जाति क़े कल्याण लिये अनेक उपदेश दिए, उनकी कर्मभूमि भारत ही रही, लेकिन बौद्ध धर्म भारत मे पनप नहीं पाया ओर यह धर्म जड़ सहित भारत से उखड़ गया। भारत मे बौद्ध जनसंख्या 0.6% है। जिसमे सबसे ज्यादा सिक्कम मे 27.39%, अरुणाचल प्रदेश 11.77 % है। इस धर्म का प्रादुर्भाव भी छठी सदी ई.पू. मे ही हुआ था। बौद्ध धर्म भारत मे 12 वी शताब्दी तक रहा। उस क़े बाद से 21 वी सदी तक बौद्धधर्म का पतन ही होते चला गया। फाहियान ने सन 414 ने और ह्वेनसांग ने सन 614 से 630 ई. के बीच भारत यात्रा की। फाहियान ने बौद्ध देवालयो को बहुत अच्छी तरह से परिचालित होते हुए देखा था। वही ह्वेनसांग जब भारत आया तब तक बहुत कुछ बदल गया था। ह्वेनसांग क़े आने तक भारत का अधिकांश हिंस्सा बौद्धधर्म से मुक्त होकर वापस हिन्दू धर्म मे आ गया था। कई कारणों से संविधान निर्माता डॉ भीमराव अम्बेडकर ने १९५६ को बौद्ध धर्म अपना लिया। उनके साथ ही उनके लाखो अनुयायीओ ने भी बौद्ध धर्म अपना लिया।
बौद्ध धर्म क़े पतन क़े जो प्रमुख कारण है उनमे, बौद्ध धर्म का निरीश्वरवाद होना है। बौद्ध धर्म का उदय हिन्दू धर्म के प्रतिपक्षी के रूप मे हुआ। जिस समय इसका प्रादुर्भाव हुआ था उस समय वैदिक उपासना पद्धति कुछ जटिल कर्मकाण्डो मे परिणत हो गयी थी। हिन्दू धर्म की बुराइयों की निंदा खुलकर बौद्धधर्म ने की। इन क्रियाओ के उपदेशदाता ब्राह्मणो के क्रिया-काण्ड के विरुद्ध अपने सरल धर्म, सत्य, अहिंसा, क्षमा, दया, मैत्री, आत्म-संयम, सदाचार,इत्यादि का उपदेश उस समय की जन साधरण भाषा मे दिया गया ।
बुद्ध का सिद्धांत कोई सिद्धांत न होकर शून्यवाद है, मै मिथ्या हूँ, जगत भी मिथ्या है और जो जगत को बनाने और संचालित करने वाले ईश्वर है वे भी मिथ्या है। इनके सिद्धांत वैदिक धर्म के सर्वथा विपरीत सिद्ध हुए। बुद्ध ने आत्मा और परामात्मा क़े सम्बन्ध बताने के प्रयत्न नहीं किया।
निर्वाण का सिद्धांत - हिन्दू धर्म मे मृत्यु की बाद मोक्ष तथा पुनर्जन्म पर विशेष महत्व देता है जब की बौद्ध धर्मशास्त्र निर्वाण की बात करता है। निर्वाण का अर्थ बुझ जाना या शांत हो जाना मानता है। निर्वाण की प्राप्ति होने से मानव तृष्णा, दुःख, पुनर्जन्म आदि के बंधन से मुक्त हो जाते है। यानि शरीर का जब लोप हो जाता है तो वह बूत जाता है ऐसा बौद्ध दर्शन कहता है । कुछ दार्शनिक तत्वों तथा विशेष विधानों के अलावा बौद्ध दर्शन मे कुछ भी नहीं है। बौद्ध नीति एक अराजकता पूर्ण समाज बनाने की ओर इशारा करती है। न तो इसमें पुण्य का कोई फल मिलता है ना ही पाप करने वाले को दण्डित करने का प्रावधान है। भजन की तो कोई विधि ही नहीं है। बौद्ध सिद्धांत क़े अनुसार हमारी मुक्ति हमारे हाथ मे है। इंद्रियों को वश मे करके द्वेष, हिंसा, काम, क्रोध, लोभ, मद, मांसाहार से विमुक्त रहो, ऐसा कर लेने मात्र से मुक्ति मिल जाएगी।
क्षणिकवाद अथवा परिवर्तनवाद :- इसके अनुसार, इस ब्रह्मांड में सब कुछ क्षणिक और नश्वर है। कुछ भी स्थायी नहीं। सब कुछ परिवर्तनशील है।
अनात्मवाद :-- बौद्ध सिद्धांत अदृष्ट द्रव्य को नहीं मानता। बौद्ध आत्मा को भी नहीं मानते , बौद्ध धर्मशास्त्र शरीर को भी मिथ्या मानता है।
कर्मवाद :-- सनातन धर्म कर्मो को प्रधान मानता है अर्थात हर कोई अपने पूर्व कर्म के अनुसार ही इस जन्म मे फल पाते है और इस जन्म के कर्मो के आधार पर हम मोक्ष तथा कर्मो के अनुसार ही हमारा अगला तय होता है। जबकि बौद्ध धर्म कर्म करने को मानसिक निर्णय मानता है। महात्मा बुद्ध ने आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार नहीं किया।
विदेशी हमले :-- भारत की भूमि पर हमेशा से हमले होते रहा है। 12 वी और 13 वी सदी मे अनेक तुर्क और मुस्लिम लुटेरों ने बौद्ध सम्प्रदा को भारी नुकसान पहुंचाया।उनके अनेक शिला केन्द्रो, मठो तथा स्तंभो को व्यापक पैमाने पर ध्वश्त कर दिया गया, विश्व प्रसिद्ध नालंदा विश्वविधालय और विक्रमशिला के पुस्कालय जला दिया गये। उस समय के विद्वान आनंदतीर्थ ने कहा था "प्रायः सारे ही ग्रंथ समाप्त हो गये है। इसका करोड़वा अंश भी नहीं बचा है।"
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