Monday, July 27, 2020

सनातन धर्म के प्रहरी - भाई जी हनुमान प्रसाद पोद्दार

हनुमान प्रसाद पोद्दार जी का जीवन परिचय

हनुमान प्रसाद पोद्दार जी का जन्म असम के शिलॉग मे 17 सितम्बर 1892 को एक मध्यमवर्गीय मारवाड़ी परिवार मे हुआ था। इनके पिता जी लाला भीमराज अग्रवाल और माता जी रिखीबाई राजस्थान के रतनगढ़ के रहने वाले थे। इनके जन्म के दो महीने बाद ही इनकी माता जी का स्वर्गवास हो गया। इनका पालन- पोषण  इनकी दादी जी रामकौर देवी ने किया। इनकी दीदी जी हनुमान जी भक्त थी इसीलिए इनका नाम हनुमान प्रसाद रख दिया। इनकी दादी जी धार्मिक प्रवृत्ति की थी इसलिए इनको धार्मिक संस्कार बचपन मे ही घर से ही मिल गए। लोग इन्हे प्यार से भाई जी कहकर भी बुलाते हैं। 

दीक्षा :--

हनुमान प्रसाद पोद्दार जी को निंबार्क संप्रदाय के संत ब्रजदास जी ने दीक्षा दी थी। जो की बरसाना के रहने वाले थे। 

असम का भूकंप :--

जब भाई जी 4 साल के थे तभी शिलांग में भयानक भूकंप आया था। जिस स्थान पर हनुमान प्रसाद  जी थे वहां  पर भूकंप के दौरान ईंट पत्थर गिरने लगे । इनके ऊपर एक तखत आ कर गिर गया और ये उस तखत के नीचे आ गए, जिससे इनकी जान बच गयी।  हनुमान प्रसाद  जी को खरोंच तक नहीं आई जबकि उनके 2 फुफेरे भाइयों कि उसी शिला के नीचे दबने से मौत हो गई। इस भूकंप का इनके जीवन पर बड़ा असर हुआ , उनको ऐसा महसूस हुआ की भगवान ने उनकी जान बचाई है।  भगवान उनसे कोई बड़ा काम करवाना चाहते है।  

भाई जी स्वतंत्रता सेनानी  के रूप मे :-

1912 में वे अपना पुश्तैनी कारोबार सँभालने के लिए कलकत्ता आ गये,  कलकत्ता में मात्र 13 वर्ष की आयु में भाईजी हनुमान प्रसाद पोद्दार जी ने अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचारों के खिलाफ विद्रोह कर दिया । 19 जुलाई 1905 में लार्ड कर्जन द्वारा बंग भंग की घोषणा के बाद जब मां भारती के सपूतों ने विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का निर्णय लिया तो इस आंदोलन के साथ भाईजी भी जुड़ गए। 16 जुलाई 1914 को उन्हें तीन साथियों सहित राष्ट्रद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। भाईजी के जीवन की शुरुआत स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदारी से हुई। उनमें देशप्रेम कूट-कूट कर भरा था। स्वतंत्रता आंदोलन में वह जेल भी गए। परिवार की खराब आर्थिक स्थिति व अंग्रेजी हुकूमत की धमकियां भी उन्हें विचलित नहीं कर पाई। इस प्रकार बाल्यावस्था मे ही स्वदेशी व्रत ले लिया और फिर जीवन भर उसका पालन किया। केवल उन्होंने ही नहीं, तो उनकी पत्नी ने भी इस व्रत को निभाया और घर की सब विदेशी वस्तुओं की होली जला दी। 

संपादक का पदभार :--

1914 में उनका सम्पर्क महामना मदनमोहन मालवीय जी से हुआ ,महामना पंडित मदन मोहन मालवीय बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए धन संग्रह करने के उद्देश्य से कलकत्ता आए तो पोद्दार जी ने कई लोगों से मिलकर इस कार्य के लिए दान-राशि दिलवाई। 1926 में मारवाड़ी अग्रवाल महासभा का अधिवेशन दिल्ली में था सेठ जमनालाल बजाज अधिवेशन के सभापति थे। इस अवसर पर सेठ घनश्यामदास बिड़ला भी मौजूद थे। बिड़ला जी ने भाई जी द्वारा गीता के प्रचार-प्रसार के लिए किए जा रहे कार्यों की सराहना करते हुए उनसे आग्रह किया कि सनातन धर्म के प्रचार और सद विचारों को लोगों तक पहुँचाने के लिए एक संपूर्ण पत्रिका का प्रकाशन होना चाहिए। बिड़ला जी के इन्हीं वाक्यों ने भाई जी को ‘कल्याण’ नाम की पत्रिका के प्रकाशन के लिए प्रेरित किया। 1918 में भाई जी व्यापार के लिए मुम्बई आ गये। यहाँ सेठ जयदयाल गोयन्दका के सहयोग से अगस्त, 1926 में धर्मप्रधान विचारों पर आधारित ‘कल्याण’ नामक मासिक पत्रिका प्रारम्भ की। कल्याण तेरह माह तक मुंबई से प्रकाशित होती रही। इसके बाद अगस्त 1926 से गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित होने लगी . इसके बाद “कल्याण” भारतीय परिवारों के बीच एक लोकप्रिय संपूर्ण पत्रिका के रुप में स्थापित हो गई और आज भी धार्मिक जागरण में कल्याण एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैकल्याण मासिक पत्रिका पर महात्मा गांधी की सीख :--

कल्याण के प्रकाशित होने से पहले पोद्दार जी की मुलाकात गाँधी जी से हुईं। कल्याण के लिए गांधी जी से पोद्दार जी ने आशीर्वाद माँगा, गाँधी जी ने कल्याण में दो नियमों का पालन करने को कहा। एक तो कोई बाहरी विज्ञापन नहीं देना दूसरे, पुस्तकों की समालोचना मत छापना।

अपने इन निर्देशों को ठीक प्रकार से समझाते हुए गांधी जी ने कहा- ‘‘तुम अपनी जान में पहले यह देखकर विज्ञापन लोगे कि वह किसी ऐसी चीज का न हो जो भद्दी हो और जिसमें जनता को धोखा देकर ठगने की बात हो। पर जब तुम्हारे पास विज्ञापन आने लगेंगे और लोग उनके लिए अधिक पैसे देने लगेंगे तब तुम्हारे विरोध करने पर भी…साथी लोग कहेंगे…देखिए इतन पैसा आता है क्यों न विज्ञापन स्वीकार कर लिया जाए?", गाँधी जी का पालन गीताप्रेस ने निरंतर किया।कल्याण मासिक पत्रिका की लोकप्रिता :--

काम लागत मे एक उत्तम कोटि की पत्रिका निकाने के लिये पोद्दार जी रात-दिन मेहनत करते थे। कल्याण क़े आकर को बड़ा रखा गया , श्रेष्ठ कलाकारो द्वारा बनाये गए रंगीन फोटो से सुसज्जित किया गया ,पाढ़य सामग्री को रोचक बनाने क़े लिये देशभर क़े धार्मिक विचारको को पत्र लिखे गए। साथ ही इसका मूल्य भी कम रखा गया। कल्याण पत्रिका क़े अंतिम पेज पर लघु कथा प्रकाशित की जाती थी जिसका शीर्षक होतो था "पढ़ो समझो और करो। ये कहानियाँ इतनी रोचक और लाभप्रद होती थी की पाठक सबके पहले इसे ही पढ़ना पसंद करता थे। 

भगवान के दर्शन :--

आध्यात्मिक चिंतन में लीन रहने वाले भाईजी हनुमान प्रसाद पोद्दार चौपाटी स्थितएक बेंच पर बैठकर जप कर रहे थे तभी एक पारसी प्रेत आया। भाईजी ने उसके कहने पर एक ब्राम्हण को गया भेजकर उसका पिंडदान करवाया। तब से वह भाईजी की हरवक्त मदद करता था।- कहते हैं कि 16 सितम्बर 1927 को जसीडीह में 15 लोगों की मौजूदगी में भगवान् विष्णु ने साक्षात भाई जी को दर्शन दिया था। 1936 में गीता वाटिका गोरखपुर में प्रवास के दौरान देवर्षि नारद और महर्षि अंगिरा ने भाईजी को दर्शन दिया था।

सम्मान :--

अंग्रेजों के समय में गोरखपुर में उनकी धर्म एवं साहित्य सेवा और उनकी लोकप्रियता को देखते हुए उस समय के अंग्रेज कलेक्टर पेडले ने उन्हें ‘रायसाहब’ की उपाधि से अलंकृत करनेका प्रस्ताव रखा था, लेकिन पोद्दार जी ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था।

इसके बाद अंग्रेज कमिश्नर होबर्ट ने ‘राय बहादुर’ की उपाधि देने का प्रस्ताव रखा लेकिन पोद्दार जी ने इस प्रस्ताव को भी स्वीकार करने से इंकार कर दिया था।

देश की स्वाधीनता के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू जी की सलाह पर केंद्रीयगृह मंत्री गोविंद बल्लभ पंत ने पोद्दार जी को भारत रत्न की उपाधि से अलंकृत करने का प्रस्ताव रखा गया, परंतु उन्होंने इसमें भी कोई रुचि नहीं दिखाई थी। उसके बाद गोविंद बल्लभ पंत जी ने पोद्दार जी को एक पत्र लिखा, जिस मे लिखा था शायद हम गलत थे, आप भारत रत्न से कही ऊपर है, यह सम्मान तो आप जैसे वयक्ति के लिये तुक्छ है।

हनुमान प्रसाद पोद्दार के सम्मान में डाक टिकट जारी की गई।19 सितम्बर 1992 को हनुमान प्रसाद पोद्दार जी के सम्मान मे भारतीय डाक विभाग ने 1 रुपये मूल्य का एक समारक डाक टिकट जारी किया। 

 

 मृत्यु :-

अंतिम समय मे उन्हें कैंसर हो गया, यहाँ उनके उपचार के लिये कैंसर का कोई डॉक्टर नहीं थे, जरुरत पड़ने पर दिल्ली से डॉक्टर आकर देखभाल करते थे। 22 मार्च 1971 को पोद्दार जी का निधन हो गया। उनकी समाधि गीता वाटिका में बनी है और उनकी अस्थियां आज भी उसी तरह से सुरक्षित हैं। जिस कमरे मे उन्होंने प्राण त्यागे वहा निरंतर रामायण पाढ हो रहा है।

हनुमान प्रसाद पोद्दार के नाम पर उद्यान :--

2019 मे गोरखपुर राजकीय उद्यान का नाम बदल कर हनुमान प्रसाद पोद्दार उद्यान कर दिया गया।  


Saturday, July 25, 2020

jivan parichay

जीवन परिचय

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सनातन धर्म के प्रहरी - भाई जी हनुमान प्रसाद पोद्दार 
रामचरित्र मानस के ज्योति पुंज -  भोला नाथ किंकर  

भगत पूर्ण सिंह जी - दिव्यांगजनो क़े सच्चे सेवक

डॉ गौरव शर्मा - जिन्होंने न्यूजीलैंड के पार्लियामेंट मे संस्कृत मे शपथ ले कर भारत का मान बढ़ाया जीवन परिचय - अनुपम मिश्र

Saturday, July 18, 2020

भोला नाथ किंकर - जीवन परिचय

रामचरित्र मानस के ज्योति पुंज -  भोला नाथ किंकर
जो समाज अपनी संस्कृति को छोड़ दिया, भविष्य में अराजकता के दलदल में फंसा: भोलानाथ किंकर
भोलानाथ किंकर जी का सर्वत्र जीवन रामचरित्र मानस प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित है। उन्होंने वर्तमान परिवेश में मानव की सोच कर्म पर गहरी चिंता जाहिर करते हुए कहा कि यह उन्हें दुर्गुणों की ओर ले जा रहा है। ये बिहार के पूर्णया जिला के एक छोटे से गॉव मलडीहा के रहने वाले है। इन्होने अपना सम्पूर्ण जीवन रामचरित्र मानस के पाढ मे लगाया।  इनके प्रवचन को सुनने के लिये हजारो की संख्या मे भीड़ उमड़ परती है। धर्म के प्रति तथा प्रभु श्री राम के प्रति सच्ची निष्ठा  रखने वाले भोला नाथ किंकर जी एक महान धर्म प्रचारक के रूप मे जाने जाते है। सन  1985 के आस पास इन्होने एक धार्मिक पत्रिका "मानस मारल" का संपादन भी किया। यह धार्मिक पत्रिका काफी लोकप्रिय रही। इसमे मेरे भी कुछ लेख प्रकाशित हुऐ थे, "मनुष्य का जीवन काल" मेरा बहु चर्चित लेख था।भोला नाथ किंकर जी द्वारा निस्वार्थ भाव से समाज को दी गयी सेवा को लोग लम्बे समय तक याद रखेगे।   
भोलानाथ किंकर जी के प्रवचन के वीडियो यूट्यूब पर

Friday, July 17, 2020

Special bhajan aur aarti

Shiv bhajan bholababa ke bhajan

शिव भजन, भोलेबाबा के भजन 
कैलाश के निवासी नमो बार बार हूँ, आयो शरण तिहारी प्रभु तार तार तू
महामृत्युंजय मंत्र
ॐ नमः शिवाय धुन


Devi bhajan Mata Rani ke Bhajan

देवी भजन, माता रानी के भजन 
माता तेरे चरणों मे स्थान जो मिल जाये
दुर्गा मंत्र - देवी सूक्तं- नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः
Amba Parameshwari Akhilandeshwari

Shree Ganesh bhajan

श्री गणेश भजन
श्री गणेश मंत्र, ॐ गण गणपतये नमो नमः


Thursday, July 9, 2020

Other Dharmik activities

विशेष धार्मिक कार्यक्रम 


अमरनाथ जी की सुबह की आरती 



Bhajan singer directory

List of Bhajan Singer 

Shree Ram Bhajan

श्री राम भजन 


 तेरा साथी राम, मनवा क्यूं घबराये रे
सुख के सब साथी, दुःख में ना कोई
जन्म सफल होगा रे बंदे, मन में राम बसाले
राम धुन - श्री राम जय राम जय जय राम

Tuesday, July 7, 2020

shree Krishna bhakti bhajan

श्री कृष्ण भक्ति भजन
कान्हा रे तू राधा बन जा
https://youtu.be/FcKLiXVFPlw
लीला तेरी तू ही जाने


बृज के नन्दलाल राधा के सांवरिया

बंसी बजावे नन्दलाल

रखियो लाज हमारी किशोरी राधे
कितना प्यारा है श्रृंगार
यमुना के तट पर मारी नजरिया ऐसी सांवरिया ने

मन में बसा कर तेरी मूर्ति , उतारू मैं गिरधर तेरी आरती
लगन तुमसे लगा बैठे, जो होगा देखा जायेगा
जब श्याम ने पकड़ी कलाई कर फिर क्या करना
दर्द किसको दिखाऊ कन्हैया कोई हमदर्द तुम सा नहीं है
आनंददायक मधुर भजन
मोहे पागल जमाना कहे कन्हैया तेरे प्यार में

इक नज़र कृपा की कर दो लाडली श्री राधे

मुझे तेरा दीवाना बना दिया

करुणामयी कृपा कीजिये श्री राधे

भज गोविन्दम भज गोविंद का नाम रे
रूप सलोना देख श्याम का
आओ आओ मेरे नन्दलाल आ जाओ
बसो मोरे नैनन में नंदलाल
मेरो राधा रमन गिरधारी , गिरधरी श्याम बनवारी
श्री राधा चालीसा
जा रहे हो तो जाओ बृज छोड़कर ऐसा प्यार कन्हैया नहीं मिलेगा
तुम हो काले, मै हू गोरी, तेरा मेरा मेल नहीं
एक तू जो मिला,  सारी दुनिया मिली