Saturday, February 6, 2021

आइये जानते हैं अग्र पूज्यनीय भगवन् श्रीकृष्ण की लीला को ।

कोई कहता है लीलाधर कोई कहता है वंशीधर कोई कहता है कृष्णा कोई कन्हैया प्रत्येक मनुष्य के मन की बात है जिसको जिस नाम से सुकून प्राप्त होता है उसी नाम से पुकारता है महाभारत युद्ध में अग्रणी भूमिका निभाने वाले भगवान कृष्ण को कौन नहीं जानता फिर भी हर किसी के ज्ञान के लिए एक अस्पष्ट परिचय की आवश्यकता होती है

श्रीकृष्ण को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। बात द्वापर युग की है मथुरा के राजा कंस का आतंक चरम पर पर था उसके आतंक ने उस समय और भी चरमोत्कर्ष को प्राप्त किया जब आकाशवाणी से उसे यह पता चला कि उसकी मृत्यु उसके आठवें भांजे के हांथों होगी दुष्ट कंस ने अपनी मासूम बहन देवकी तथा उनके पति वासुदेव को बंधक बनाकर कारागार में डाल दिया कंस ने अपनी बहन के आठ पुत्रों को मार डाला लेकिन जब आठवें पुत्र के जन्म का समय हुआ तो कंस को पता ही नहीं चला। वासुदेव ने अपने पुत्र को ले जाकर गोकुल में नन्द बाबा के यहाँ छोड़ दिया वहाँ पर पुत्री का जन्म हुआ वासुदेव जी उस कन्या को लेकर कंस  के कारागार में वापस आ जाते जब कंस को बच्चे के जन्म की खबर मिलती है तो वह भागा हुआ आता है लेकिन वह देखता है यह तो कन्या है लेकिन फिर भी आकश वाणी को सोचकर वह जैसे ही कन्या को मारने के लिए उठाता है वह कन्या कंस के हाथ से छूट जाती है और विराट रुप में कंस को बतलाती है कि, हे दुष्ट तुझे मारना वाला तो कहीं और है और यही कन्या विंध्याचल में जाकर विंध्यवासिनी देवी बनी

कृष्ण के वास्तविक माता पिता तो देवकी और वासुदेव थे लेकिन इनका लालन पालन नन्द बाबा तथा यशोदा मैया ने किया

यहीं से शुरू हो जाता है लीलाधर की असीम लीलाबचपन में ही राक्षसी पूतना को सबक सिखायामाखन चुराना, गैयाँ चराना, पनघट पर शरारतें करना कुछ ऐसी थी इनके बचपन की लीला। अधरों पर वंशी रखकर मनमोहक वंशी बजाना। गोपियों संग रास रचाना

कंस का वध इनके जीवन का मुख्य उद्देश्य था कंस का वध कर मथुरा वासियों को आतंक से मुक्ति दिलायी और अपने माता पिता को आजादी

महाभारत युद्ध ही नहीं अपितु सम्पूर्ण महाभारत काल में श्रीकृष्ण का अतुलनीय योगदान है युधिष्ठिर के राजमहल में राजसूय यज्ञ के दौरान श्रीकृष्ण को सभी श्रेष्ठ जनों द्वारा अग्र पूज्यनीय घोषित किया गयासम्पूर्ण महाभारत में श्रीकृष्ण ने सिर्फ और सिर्फ सत्य को चुना सदैव शान्ति को स्थापित करना चाहा  सदैव पाण्डवों की रक्षा की कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन के हौंसले को डिगने नहीं दिया सदैव अपने उपदेश से अर्जुन का मार्ग दर्शन किया। अर्जुन को कर्म का उपदेश दिया हमेशा सत्य पर चलने के बावजूद अनेक श्राप को सहन करना पड़ा जिनकी वजह से श्रीकृष्ण ही नहीं अपितु उनके सम्पूर्ण वंश का सर्वनाश हो गया और काल ने सबके साथ उन्हें भी अपने काल में समाहित कर लिया

लोगों ने आम जनमानस की तरह उनका भी अपमान किया उन्हें भी मायावी, छलिया, रणछोड़, धूर्त और न जाने किन नामों से पुकारा स्वयं इनकी बुआ के पुत्र शिशुपाल इन्हें सदैव छलिया और धूर्त कहता रहता था श्रीकृष्ण ने उसकी सौ गलतियों को क्षमा किया पर कहते हैं न जिसका काल आता है उसे कौन रोक सकता है शिशुपाल की गलतियों ने अपनी सीमा लांघ दी और कृष्ण के सुदर्शन चक्र ने उसे धड़ से अलग कर दिया

              "कोई कहे नटवर कोई नन्दलाला

              राधा का ये श्याम बड़ा दिल वाला"

लेखन : मिनी 

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