विदुर महाभारत के केन्द्रीय पात्रों में से एक थे। वे हस्तिनापुर के प्रधानमंत्री थे तथा धृतराष्ट्र और पाण्डु के भाई थे।
विदुर का जन्म भी वेदव्यास के वरदान स्वरूप हुआ था, लेकिन इनकी माता एक दासी थीं।
महात्मा विदुर को धर्मराज का अवतार भी माना जाता है। कहते हैं कि मांडव्य ऋषि ने धर्मराज को श्राप दे दिया था इसी कारणवश सौ वर्ष पर्यंत शूद्र बनकर रहे।
राजा देवक के यहाँ एक अनुपम सुन्दरी दासी कन्या थी जिसके साथ महामहिम भीष्म ने विदुर का विवाह सम्पन्न कराया था।
महात्मा विदुर धर्म और नीति के ज्ञानी थे। इन्होंने स्वयं सदा सत्य का साथ दिया। कौरव तथा पाण्डवों के आपसी द्वेष को देखते हुए इन्होंने सदैव महाराज धृतराष्ट्र को सचेत किया था। पर पुत्र प्रेम में अंधे धृतराष्ट्र को सत्य असत्य का बोध कहाँ। विदुर ने सदैव धृतराष्ट्र पुत्रों के षड्यंत्र से पाण्डु पुत्रों की रक्षा की थी। कुल वधू द्रोपदी के अपमान की भी उन्होंने निंदा की थी और राज्य सभा का त्याग कर दिया था।
महात्मा विदुर ने ही धृतराष्ट्र और माता गांधारी को वानप्रस्थ की आज्ञा दी थी। महात्मा विदुर ने सभी तीर्थ स्थलों का भ्रमण किया था। युधिष्ठिर के अनुरोध पर उन्होंने अपनी तीर्थ यात्रा का वर्णन सुनाया था।
लेखन : मिनी
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