Saturday, January 23, 2021

आइये जानते हैं कौन थे भीष्म पितामह ?

दोस्तों, हमने सबने टीवी पर महाभारत जरूर देखी है। बचपन से लेकर आज तक अपने बड़े बुजुर्गों से महाभारत की कहानियों को सुना है। कुछ ने स्वयं महाभारत पढ़ी है। आइये हम जानते हैं पितामह भीष्म के विषय में जिनके त्याग और बलिदान की कहानी है सदियों पुरानी। 

देवव्रत यानी भीष्म पितामह कुरू वंश के वीर और प्रतापी राजा महाराज शांतनु के पुत्र और महाराज प्रतीप के प्रपौत्र थे। भीष्म ने भरत वंश की गरिमा और हस्तिनापुर के स्वाभिमान की रक्षा के लिए अतुलनीय योगदान दिया। इनकी माता कोई और नहीं पतित पावनी माँ गंगा थीं, जिन्होंने अपने पुत्र को त्याग और समर्पण की शिक्षा दी।  पितामह भीष्म के त्याग और शौर्य की गाथा युगों युगों तक विद्यमान रहेगी। 

कहा जाता है कि एक बार महाराज शांतनु निषाद कन्या सत्यवती के रूप एवं सौन्दर्य पर मोहित हो सत्यवती के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा।  सत्यवती के पिता ने विवाह के लिए शर्त रखी कि, 'जब महाराज शांतनु सत्यवती से उत्पन्न पुत्र को हस्तिनापुर का उत्तराधिकारी बनाने का वचन देंगे तभी वह अपनी पुत्री का विवाह करेंगे। ' निषाद की इस शर्त से निराश होकर महाराज शांतनु अपने राज्य वापस लौट आये।  लेकिन इसके पश्चात उनकी दशा बहुत ही सोचनीय हो गयी थी।  पिता की इस दशा से हैरान परेशान जब भीष्म का इस तथ्य से सामना हुआ तो उन्होंने स्वयं सत्यवती के पिता से मिलकर उन्हें वचन दिया कि, "मैं आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करूँगा। "आप इस बात से निश्चिंत होकर अपनी पुत्री का विवाह मेरे पिता से कर दीजिए। पुत्र के इस त्याग और बलिदान से प्रसन्न होकर पिता ने उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान दिया। 

पितामह भीष्म ने आजीवन हस्तिनापुर की सेवा की।  अपने राज्य की सेवा को ही अपना धर्म माना और अपने कर्तव्य से कभी पीछे नहीं हटे। सत्य के रास्ते से होते हुए अपने कर्तव्य को पूरा किया कहा जाता है कि इन्होंने सत्य को साबित करने के लिए अपने गुरु परशुराम से भी युद्ध किया था। 

आजीवन अपने राज्य की सेवा की।  अपने कर्तव्य को निभाया और वचन पर सदैव अडिग रहे। इनका वचन कहीं न कहीं इनकी कमजोरी बनी। महाभारत के युद्ध में वचनबद्ध होकर सत्य होने के बावजूद पाण्डु पुत्रों का साथ न दे सके। अपने राज्य की रक्षा में अपना सर्वस्व कुर्बान कर दिया। 

महामहिम भीष्म ने भरत वंश की कीर्ति को ही नहीं अपितु वैभव को भी बढ़ाया महामहिम के नेतृत्व में हस्तिनापुर भारत वंश के सबसे शक्तिशाली और वैभव सम्पन्न राज्यों में से एक था। 

लेखन : मिनी 




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