Monday, December 21, 2020

आदि गुरु शंकराचार्य का जीवन परिचय

 आदि गुरु शंकराचार्य का जीवन परिचय 

“वास्तविक आनन्द उन्हीं को प्राप्त होता है जो आनन्द की तलाश नहीं कर रहे होते “

अद्वैत  वेदांत के प्रणेता, संस्कृत के विद्वान, उपनिषद व्याख्याता आदि गुरु शंकराचार्य का जन्म दक्षिण भारत के केरल प्रान्त में 788 ईस्वी में काली ग्राम में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था | लेकिन अपने जीवन का अधिकांश समय उन्होंने उत्तर भारत में व्यतीत किया| शंकराचार्य के बचपन का शंकर था| आगे चलकर यह  'शंकर’ शंकराचार्य के नाम से प्रसिद्ध हुए| कहा जाता है कि शंकराचार्य बचपन से ही सन्यासी बनना चाहते थे| लेकिन उनकी माता नहीं चाहती थी कि उनके पुत्र गृह त्याग करे, पर शंकराचार्य की भावनाओं को समझते हुए उनकी माता ने एक शर्त पर उन्हें सन्यास की आज्ञा दी कि उनकी मृत्यु के पश्चात उनका अंतिम संस्कार स्वयं उनके पुत्र शंकर ही करेंगे| शंकराचार्य ने अपनी माता के अनुरोध को स्वीकार कर लिया और अपना सबकुछ त्याग कर ज्ञान का खोज में चल पड़े|

 आत्मा की गति मोक्ष में है”

शंकराचार्य ने अपनी अपनी अन्य निष्ठा के फलस्वरूप अपने गुरु से शास्त्रों का ज्ञान ही नहीं प्राप्त किया अपितु ब्रह्मत्व को भी अनुभव किया|जीवन के व्यावहारिक तथा आध्यात्मिक पक्ष की सत्यता का ज्ञान उन्हें काशी में प्राप्त हुआ | काशी में गंगा तट पर शंकराचार्य का सामना एक चाण्डाल से हुआ| उसके स्पर्श से शंकराचार्य कुपित हो उठे|  चाण्डाल ने हंसते हुए शंकराचार्य से पूछा, “आत्मा और परमात्मा तो एक हैं| जिस देह से तुम्हारा स्पर्श हुआ, अपवित्र कौन है? तुम या तुम्हारे देह का अभिमान? परमात्मा तो सभी की आत्मा में है| तुम्हारे सन्यासी होने का क्या अर्थ है जब तुम ऐसे विचार रखते हो?”

कहा जाता है कि चाण्डाल के रूप में स्वयं भगवान शंकर ने उन्हें दर्शन देकर ब्रह्म और आत्मा का सच्चा ज्ञान दिया| इस ज्ञान प्राप्ति के पश्चात वे दुर्ग रास्तों से होते हुए बद्रीकाश्रम पहुंचे यहाँ चार वर्ष तक रहने के पश्चात केदारनाथ पहुँचे| जहाँ उनका सामना मण्डन मिश्र नामक एक कर्मकांडी ब्राह्मण से हुआ जिसको इन्होंने शास्त्रार्थ में पराजित किया और तत्पश्चात उनकी पत्नी उभय भारती को भी हराया|

शंकराचार्य की शिक्षायें तथा कार्य: आदि शंकराचार्य के दर्शन को अद्वैत वेदांत कहा जाता है| शंकराचार्य का 'अद्वैत वेदांतवाद' उन्नीसवीं शताब्दी में काफी लोकप्रिय हुआ| उन्होंने प्राचीन भारतीय उपनिषदों के सिद्धांतों को पुनर्जीवित किया और संसार को भ्रम तथा माया बताया| शंकराचार्य ने हिन्दू धर्म को व्यवस्थित करने का भरपूर प्रयत्न किया| और साधु समाज की अनादि काल से चली आ रही धारा को पुनर्जीवित कर चार धाम की चार पीठ का गठन किया जिस पर चार शंकराचार्यो की परम्परा की शुरुआत हुई|

चार मठ जिसका गठन शंकराचार्य ने किया :-

1)      बद्रीनाथ

2)      शृंगेरी पीठ

3)      द्वारिकापीठ

4)      शारदा पीठ|

इन्होंने अनेक विधर्मियों को अपने धर्म में दीक्षित किया| इन्होंने ब्रह्म सूत्रों की बड़ी ही विशद तथा रोचक व्याख्या की है| स्मार्त सम्प्रदाय में शंकराचार्य को शिव का अवतार माना जाता है| इन्होंने ईश, केन, कठिन, मुण्डक, मांडूक्य, ऐतरेय, तैत्तिरीय, बृहदारण्यक और छन्दोग्योगपनिषद् पर भाष्य लिखा| वेदों में लिखे ज्ञान को एकमात्र ईश्वर को संबोधित समझा और पूरे भारत में प्रचार तथा वार्ता की|

शंकराचार्य से सन्यासियो के ‘दसनामी सम्प्रदाय’ का प्रचलन हुआ| इनके चार शिष्य थे और उन चारों के कुल मिलाकर दस शिष्य हुए| इन दसों के नाम से सन्यासियों की दस पद्धतियाँ विकसित हुईं| इस सम्प्रदाय के साधु प्रायः भगवा वस्त्र पहनते एक भुज वाली लाठी रखते और गले में चौवन रूदाक्ष की माला पहनते थे| कठिन योग साधना और धर्म प्रचार में उनका जीवन बितता था|

मात्र 32 वर्ष की अवस्था में शंकराचार्य निर्वाण को प्राप्त हुए| इस छोटी सी उम्र में भारत भ्रमण कर हिंदू समाज को एक सूत्र में पिरोने का कार्य किया|

कलियुग के प्रथम चरण में विलुप्त तथा विकृत वैदिक ज्ञान विज्ञान को उद्वासित और विशुद्ध कर वैदिक वांग्मय को दार्शनिक, व्यावहारिक, वैज्ञानिक धरातल पर समृद्ध करने वाले एवं राजर्षि सुगन्धद्रव्यं को सार्वभौम सम्राट स्थापित करने वाले चतुराग्नाय-चतुष्पीठ संस्थापक नित्य तथा नैमित्तिक युग्मावतार श्रीशिवस्वरूप भगवात्पाद शंकराचार्य की अमोघदृष्टि तथा अद्भुत कृति सर्वथा स्तुत्य है|

 लेखन : मिनी  

प्रकाशक : प्रिंस म्यूजिक कंपनी

3 comments:

  1. Amazing article with much informative stuff and clean writing style and great vocabulary

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  2. Robust words and mature writing skills with vibrant ideas.Keep it up🤗

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