12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन
1. सोमनाथ ज्योतिर्लिंग :-गुजरात राज्य के सौराष्ट्र नगर मे अरब सागर के तट पर स्थित है। इसे प्रथम ज्योतिर्लिंग माना जाता है। इसका वर्णन स्कन्द पुराण के प्रभास खण्ड मे किया गया है। भगवान शिव माता पार्वती को बताते है की, जिस समय ना ब्रह्मा थे ना भूमि थी, ना सूर्य थे ना ही ये सम्पूर्ण जगत था। उस समय प्रलय काल मे ब्रह्मा जी ने इस दिव्य लिंग की रक्षा इस भावना से की मुझे भविष्य मे यहाँ विराजवान होना है। पूर्वकल्पो मे यह शिवलिंग सप्त पताललोक को भेदन करने वाला तथा कोटि-कोटि सूर्यो के सामान तेजस्वी था।
प्रभासक्षेत्र का महत्त्व :-
वैज्ञानिक महत्त्व - इस मंदिर मे एक बाणस्तंभ है, जिसके तीर को दक्षिण दिशा की ओर इंगित किया गया है। मंदिर ओर दक्षिणी ध्रुव की बीच मे कोई धरा (भूमि) नहीं है। मंदिर के केंद्रीय हॉल को अष्टकोणीय शिव-यंत्र का आकार दिया गया है ताकि मंदिर को समुद्र की दीवार से सुरक्षा प्रदान की जा सके।
पौराणिक महत्त्व - प्रभासक्षेत्र सभी तीर्थो मे श्रेष्ठ है। समस्त क्षेत्रो मे प्रभासक्षेत्र भगवान शिव को अत्यधिक प्रिय है, प्रभास मे उत्तम सिद्धि ओर परम गति प्राप्त होती है। इसके पूर्व भाग मे अंधकार को नास करने वाले सूर्य देवता है, पश्चिम मे माधव जी है, दक्षिण मे समुंद्र है तथा उत्तर मे भवानी है। ब्रह्माण्ड मे जितने भी तीर्थ है, वे सभी वैशाख की चतुर्दशी को सोमनाथ के पास आते है।प्रभासक्षेत्र मे ब्रह्मतत्व, विष्णुतत्व ओर रूद्रतत्त्व एकत्र उपलब्ध हो जाते है, जो की एक दुर्लभ संयोग है। इस क्षेत्र मे रहने वालो को मोक्ष की प्राप्ति होती है तथा जो भी प्राणी इस क्षेत्र मे मरता है उसे मोक्ष मिल जाता है तथा वह प्राणी संसार मे आने ओर जाने की बंधन से मुक्त हो जाता है। ,
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग को हर एक सृष्टि मे अलग-अलग नामो से जाना जाता है। स्कंद पुराण मे भगवान शिव पार्वती जी बताते है की - पूर्वकाल मे मैं ही स्पर्शलिंग स्वरूप मौजूद था। उस समय कोई भी मनुष्य यहाँ मुझे नहीं जानता था। जलप्रलय के बाद नूतन ब्रह्मा की सृष्टि हुई। अबतक छह ब्रह्मा बदल गये है और अब ये सातवे ब्रह्मा का कल्प चल रहा है जिसका नाम "शतानंद" है। बीते हुए कल्पो मे जो पहले ब्रह्मा थे उनका नाम बिरिच्जी था, उनके समय मे इस शिवलिंग का नाम मृत्युंजय था। दूसरे कल्प मे जो ब्रह्मा हुए उनका नाम पद्मभू था, उस वक्त सोमनाथ का नाम कालाग्निरूद्र था। तीसरे कल्प मे जो ब्रह्मा हुए उनका नाम स्वयंभू था, उस वक्त सोमनाथ का नाम अमृतेश था। चौथे कल्प मे जो ब्रह्मा हुए उनका नाम परमेष्टि था, उस वक्त सोमनाथ का नाम अनामय था। पांचवे कल्प मे जो ब्रह्मा हुए उनका नाम सुरज्येष्ट था, उस वक्त सोमनाथ का नाम कर्तिवास था। छठे कल्प मे जो ब्रह्मा हुए उनका नाम हेमगर्भ था, उस वक्त सोमनाथ का नाम भैरवनाथ था। भगवान शिव कहते है आठवे कल्प जो ब्रह्मा सृष्टि का सृजन करेगे वे चतुमुर्ख नाम से विख्यात होंगे तथा तब सोमनाथ का नाम प्राणनाथ होगा। इस प्रकार अबतक सोमनाथ के आठ नाम हो चुके है।
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का चंद्रदेव से सबंध - दक्ष प्रजापति की सत्ताइस पुत्रियाँ थी, उन सभी कन्याओ का विवाह दक्ष ने चंद्रदेव से कर दिया। किन्तु चंद्रदेव का लगाव व प्रेम केवल रोहिणी क़े प्रति था। जिससे अन्य कन्याये बहुत अप्रसन्न रहती थी, उन्होंने अपनी यह व्यथा अपने पिता से बताई, समस्या का समाधान करने हेतु दक्ष ने चंद्रदेव को समझाया किन्तु चंद्रदेव रोहिणी क़े प्यार मे वशीभूत थे अतः उन्होंने बात को अनसुनी कर दी। तत्पश्चात दक्ष ने क्रोधित होकर चंद्रदेव को 'क्षयग्रस्त' होने का श्राप दे दिया। इस श्राप से चंद्रदेव क्षयग्रस्त हो गये। बाद मे चंद्रदेव ने भगवान शिव की घोर तपस्या की, इस श्राप से मुक्ति पाने क़े लिये दस करोड़ बार मृत्युंजय मंत्र का जाप किया। चंद्रदेव से प्रसन्न होकर शिव प्रकट हुए और चन्द्रमा को श्राप मुक्त होने का वादन दिया। चन्द्रमा ने जिस शिवलिंग क़े पूजा की उसमे स्वंभू शिव समां गये। इस प्रकार चंद्रदेव ने जिस स्थान पर शिवलिंग की स्थापना की वह स्थान सोमश्वर यानि सोमनाथ कहलाया।
सोमनाथ मंदिर का निर्माण चंद्रदेव ने सोने से करवाया था, सूर्यदेव ने चाँदी से और कृष्ण ने चन्दन से मंदिर का निर्माण करवाया। पहली बार पत्थरो से सोमनाथ मंदिर का निर्माण राजा भीमदेव ने करवाया था। पहली बार पत्थरो से सोमनाथ मंदिर का निर्माण राजा भीमदेव ने करवाया था। सोमनाथ मंदिर पर कई बार हमला किया गया इसे छ: बार तोड़ा गया।
2. मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग :-
आन्ध्र प्रदेश के कृष्णा ज़िले में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैल पर्वत पर मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग स्थित है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग मे इसे दूसरा स्थान प्राप्त है। इस स्थान को दक्षिण का कैलाश भी कहा जाता है। स्कन्द पुराण मे श्रीशैल काण्ड मे इस ज्योतिर्लिंग का महत्व बताया गया है। इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से मनुष्य के सारे कष्ट दूर हो जाते है, किसी भी प्रकार की असाध्य बीमारी ठीक हो जाती है। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने वालो को मोक्ष की प्राप्ति होती है और वह प्राणी आने-जाने के बंधन से मुक्त हो जाता है।
मल्लिकार्जुन र्ज्योतिर्लिंग के बारे मे पौराणिक मान्यता :-- शिवपुराण के अनुसार, भगवान शिव और पार्वती के दोनों पुत्र कार्तिकेय और गणेश जी का विवाह को लेकर एकबार विवाद हो गया। गणेशजी अपना विवाह पहले करवाना चाहते थे जब कि कार्तिकेय गणेश से बड़े थे इसलिए कार्तिकेय पहले अपना विवाह करवाना चाहते थे। भगवान शिव ने इस समस्या को सुलझाने के लिया एक शर्त रखी, उन्होंने कहा जो भी तुम दोनों मे से पहले पृथ्वी कि परिक्रमा करके पहले आयेगा, उसका विवाह पहले कर दिया जाएगा। कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर सवार होकर पृथ्वी की परिक्रमा करने निकल पड़े। परन्तु गणेश जी वही डटे रहे, गणेश जी ने वही माता पिता की सात बार परिक्रमा कर ली, जिसका फल पृथ्वी की परिक्रमा करने के समतुल्य ही था। भगवान शिव और माता पार्वती गणेश जी चतुर बुध्दि देख कर काफी खुश हुऐ, और उन्होंने गणेश जी का विवाह कार्तिकेय के विवाह से पहले ही कर दिया। जब तक कार्तिकेय पृथ्वी की परिक्रमा कर के आते उसके पहले ही गणेश जी का विवाह विश्वरूप प्रजापति की पुत्रियों रिद्धि (कुछ ग्रंथो मे बुद्धि नाम दिया हुआ है) और सिद्धि के साथ हो चूका था। जब कार्तिकेय को इस बात का पता चला तो व नाराज होकर क्रौंच पर्वत पर जाकर निवास करने लगे। भगवान शिव और पार्वती जी ने कार्तिकेय को मानने के लिये नारद जी जो भेजा लेकिन कार्तिकेय नहीं माने। कार्तिकेय को मानाने के लिए माता पार्वती क्रौंच पर्वत पहुंच गयी, उधर भगवान शिव भी एक र्ज्योतिर्लिंग के रूप मे प्रकट हो गये। तभी से इस र्ज्योतिर्लिंग की पूजा होने लगी। मल्लिका का माता पार्वती नाम है तथा अर्जुन से आशय भगवान शिव से है।
मल्लिकार्जुन र्ज्योतिर्लिंग से जुडी लोक मान्यता :-- कौंच पर्वत के समीप में ही चन्द्रगुप्त नामक राजा की राजधानी थी। एकबार उनकी कन्या किसी संकट में पड़ गयी, विपत्ति से बचने के लिए वह अपने पिता के राजमहल से भागकर कौंच पर्वत पहुंच गयी। वह वही ग्वालों के साथ कन्दमूल खा कर और दूध पी कर रहने लगी। उस कन्या के पास एक श्यामा नाम की गाय थी। एक दिन किसी चोर ने कन्या को दूध दुहते हुए देख लिया। तब वह क्रोध में आगबबूला हो उसको मारने के लिए दौड़ पड़ी। जब वह गाय के समीप पहुँची, तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा, क्योंकि वहाँ उसे एक शिवलिंग के अतिरिक्त कुछ भी दिखाई नहीं दिया। आगे चलकर उस राजकुमारी ने उस शिवलिंग के ऊपर एक सुन्दर सा मन्दिर बनवा दिया। वही प्राचीन शिवलिंग आज ‘मल्लिकार्जुन’ ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
3. महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग :-
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्यप्रदेश के उज्जैन मे स्थित है। इसकी गिनती १२ महत्वपूर्ण ज्योतिर्लिंग मे होती है।
आकाशे तारकं लिंग पाताले हाटकेश्वरम्।
मृत्युलोके महाकालं लिंगत्रयं नमोस्तुऽते॥
अर्थात जो भगवान् शिव आकाश में तारक शिवलिंग, पाताल में हाटकेश्वर शिवलिंग एवं पृथ्वी पर महाकाल बनकर विराजते हैं, उन्हें हम नमन करते हैं।
स्कन्द पुराण के अवन्त्य खण्ड मे महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का वर्णन किया गया, पौराणिक मान्यतया के अनुसार पचास हजार मंत्रो का जाप करने से जो फल मिलता है, वही पुण्य महाकाल के दर्शन मात्र से मिल जाता है। इस मंदिर मे प्रतिदिन सुबह भस्म आरती होती है, जिस भस्म से आरती की जाती है वह सुबह जले हुऐ ताजा मुर्दे की भस्म होती है। मुर्दे की भस्म से महाकाल का श्रृंगार किया जाता है, यह प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है।
पुराण मे महाकाल क़े इस स्थान को उज्जयिनी पुरी क़े नाम से जाना जाता था, जो की आजकल उज्जैन नगर क़े नाम प्रसिद्ध है। पुराण मे इस स्थान के अनेक नाम बताये गये है, जैसे कुशस्थली, अवंती, अवंतिका, अवंतिकपुरी। इस क्षेत्र क़ो महाकाल वन का नाम दिया गया है। महाकाल वन मे साठ कोटि सहस्त्र और साठ कोटि शत तीर्थ है, तथा शिवलिंग तो अनगिनत संख्या मे है। पुराण मे वर्णन किया गया है की महाकाल वन परमसुन्दर है वहाँ समस्त कामनाओ और फलो क़ो देनेवाली एक पवित्र पुरी है, जो बड़ी ही मनोरम और कुशस्थली नाम से प्रसिद्ध है। यहाँ सिद्ध और गन्धर्व निवास करते है और इसी स्थान पर भगवान शिव भी सदा निवास करते है। कल्प के अंत काल मे जब समस्त चराचर प्राणी नष्ट हो जाते है, सभी देवालय, नदी, समुंद्र, सरोबर, उपवन, औषधि, वृक्ष, सूरज, चाँद आदि सब कुछ नष्ट हो जाते है। उस वक्त भगवान शिव सबको लेकर कुशस्थलीपुरी मे मौजूद रहते है। अतः कुशस्थलीपुरी सबके लिये परम हितकारणी है। यहाँ मनुष्य द्वारा दिया गया थोड़ा सा भी दान अनंत गुना हो जाता है। यहाँ प्रत्येक कल्प मे देवता, औषधि, बीज तथा सम्पूर्ण प्राणियों का पालन होता है। यह स्थान सबका रक्षन (अवन) करने वाला है, इस कारण इस का नाम 'अवन्ती' है।
4. ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग :--
मध्यप्रदेश के खण्डवा जिले मे नर्मदा नदी के तट पर इंदौर से 77 KM एवं मोरटक्का से 13 KM की दुरी पर भगवान शिव का ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है।
कावेरिका नार्मद्यो: पवित्र समागमे सज्जन तारणाय |
सदैव मंधातत्रपुरे वसंतम ,ओमकारमीशम् शिवयेकमीडे || -- आदि शंकराचार्य
भावार्थ :- कावेरी एवं नर्मदा नदी के पवित्र संगम पर सज्जनों के तारण के लिए, सदा ही मान्धाता की नगरी में विराजमान श्री ओंकारेश्वर जो स्वयंभू हैं वही ज्योतिर्लिंग है। यहाँ पर नर्मदा नदी दो भागो मे विभक्त हो कर मान्धता या शिवपुरी नामक द्बीप का निर्माण करती है। इस द्बीप का आकार ओम अथवा ओमकार के सामान दिखता है।
इस ज्योतिर्लिंग का विवरण स्कंद पुराण के रेवा खंड मे मिलता है।पुराणों के अनुसार विन्ध्य पर्वत ने भगवान शिव की पार्थिव लिंग रूप में पूजन व तपस्या की थी एवं भगवान शिव ने प्रकट होकर उन्हें आशीर्वाद दिया एवं प्रणव लिंग के रूप में अवतरित हुए, यह भी कहा जाता है की देवताओं की प्रार्थना के पश्चात शिवलिंग 2 भागो में विभक्त हो गया एवं एक भाग ओम्कारेश्वर एवं दूसरा भाग ममलेश्वर कहलाया. इस दोनों ही शिवलिंगो को ज्योतिर्लिंग माना जाता है। इन मन्दिरों के आसपास के इलाके को विष्णुपुरी बताया गया है।
5. केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग :-
केदारनाथ मन्दिर के नाम से प्रसिद्धि इस मंदिर को केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग कहा जाता है। यह ज्योतिर्लिंग उत्तराखण्ड राज्य के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित है।
नर और नारायण ऋषिओ ने बहुत वर्षों तक भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए बड़ी कठिन तपस्या की। एक पैर पर खड़े होकर कई हजार वर्षों तक शिव की तपस्या करते रहे। दोनों भाइयो की इस तपस्या से भगवान शिव काफी प्रसन्न हुऐ और उनको प्रत्यक्ष दर्शन दिये और वर मांगने को कहा। भगवान् शिव की यह बात सुनकर दोनों ऋषियों ने उनसे कहा, देवाधिदेव महादेव यदि आप हम पर प्रसन्न हैं तो भक्तों के कल्याण हेतु आप सदा-सदा के लिए अपने स्वरूप को यहाँ स्थापित करने की कृपा करें। आपके यहाँ निवास करने से यह स्थान पावन हो जाएगा। यहाँ आपकी पूजा दर्शन करने वाला मनुष्य अविनाशिनी भक्ति प्राप्त करेगा, अतः आप इसी स्थान पर विराजमान होकर मनुष्यों के कल्याण और उनके उद्धार के लिए अपने स्वरूप को यहाँ स्थापित करने की हमारी प्रार्थना स्वीकार करें। उनकी प्रार्थना सुनकर भगवान् शिव ने ज्योतिर्लिंग के रूप में वहाँ वास करना स्वीकार कर लिया। इसी स्थान पर नर और नारायण नाम से दो पर्वत भी विराजमान है। केदार नामक हिमालय-श्रृंग पर स्थित होने के कारण इस ज्योतिर्लिंग को श्री केदारेश्वर-ज्योतिर्लिंग के रूप में जाना जाता है।
6. भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग :-
यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र राज्य के पुणे से लगभग 110 KM दूर सह्याद्रि नामक पर्वत पर स्थित है। इस मंदिर के पास से ही भीमा नदी बहती है, जो कृष्णा नदी से मिल जाती है।
प्राचीन शास्त्रों मे वर्णन के अनुसार कुंभकरण को कर्कटी नाम की एक महिला मिली ,उसे देख कर कुंभकरण मोहित हो गया और उससे विवाह कर लिया। विवाह के बाद कुंभकरण लंका लौट आया, लेकिन कर्कटी वही पर्वत पर रह गई। कुछ समय बाद उसको एक पुत्र हुआ जिसका नाम भीम रखा गया। उसके जन्म से ठीक उसके पिता की मृ्त्यु हो चुकी थी। अपनी पिता की मृ्त्यु भगवान राम के हाथों होने की घटना की उसे जानकारी नहीं थी। बाद में जब उसे को इस घटना की जानकारी हुई तो उसने भगवान राम का वध करने की ठान ली। अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए उसने अनेक वर्षो तक कठोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर उसे ब्रह्मा जी ने विजयी होने का वरदान दिया। वरदान पाने के बाद यह राक्षस अत्याचारी हो गया। वह मनुष्यों के साथ साथ देवी-देवता भी तंग करने लगा। धीरे-धीरे सभी जगह उसके आंतक की चर्चा होने लगी। युद्ध में उसने देवताओं को भी परास्त करना प्रारंभ कर दिया। उसने सभी तरह के पूजा पाठ बंद करवा दिए। अत्यंत परेशान होने के बाद सभी देव भगवान शिव की शरण में गए। भगवान शिव ने सभी को आश्वासन दिलाया कि वे इस का उपाय निकालेंगे। भगवान शिव ने राक्षस भीम युद्ध किया और युद्ध मे राक्षस भीम को मार दिया। भगवान शिव से सभी देवताओ ने आग्रह किया कि वे इसी स्थान पर शिवलिंग रूप में विराजित हो़ जाए। उनकी इस प्रार्थना को भगवान शिव ने स्वीकार किया और वे भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजित हो गये। इस वजह से इस ज्योतिर्लिंग को भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग नाम से जाना जाने लगा।
7. काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग :-
8. त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग :-
9. बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग :-
10. नागेश्वर ज्योतिर्लिंग :-
11. रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग :-
12. घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग :-
No comments:
Post a Comment