स्वामी विवेकानंद एक ऐसा आदर्श और श्रेष्ठ नाम है जिसको कहते हुए भला ऐसा कौन सा मानव होगा जिसका सिर श्रद्धापूर्वक उनके सम्मान में झुकता नहीं हो? धन्य है वो वीर पुरुष। धन्य है वो भारत माँ जिसकी भूमि पर स्वामी जी जैसे युग पुरुष ने जन्म लेकर। उस भूमि को गौरवान्वित किया।
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 ई० को कलकत्ता में हुआ था। इनके पिता विश्वनाथ दत्त पाश्चात्य सभ्यता में विश्वास रखने वाले व्यक्ति थे।स्वामी विवेकानंद जी के बचपन का नाम नरेंद्र नाथ दत्त था। स्वामी जी बचपन से ही तीव्र बुद्धि के थे। और इनका मन सदैव आध्यात्मिकता तथा धर्म में ही रमता था। स्वामी जी स्वामी रामकृष्ण परमहंस के परम शिष्य थे। जिनकी शिक्षा दिक्षा में इन्होंने ज्ञान तथा उन्नत को प्राप्त किया।
स्वामी विवेकानंद जी, धर्म, दर्शन, इतिहास, सामाजिक विज्ञान, कला और साहित्य आदि के प्रेमी थे। वेद उपनिषद्, भगवद् गीता, पुराण आदि ग्रंथों में इनकी गहन रुचि थी। विवेकानंद जी ने पश्चिमी तर्क, दर्शन और यूरोपीय इतिहास का अध्ययन जनरल असेंबली इंस्टीट्यूटशन (स्काटिश चर्च कालेज) में किया। 1881 ई० में स्वामी जी ने ललित कला की परीक्षा उत्तीर्ण की और 1884 ई० में स्नातक की डिग्री पूरी कर ली। स्वामी विवेकानंद जी के विषय में बताया जाता है कि, स्वामी जी प्रतिदिन पुस्तकालय जाया करते थे और मात्र एक दिन में सम्पूर्ण पुस्तक का अध्ययन कर पुस्तक वापस कर देते थे। स्वामी जी के इस अलौकिक तेज से पुस्तकालय कर्मचारी भी परेशान रहते थे।
मात्र उन्तालीस वर्ष की आयु में 4 जुलाई 1902 ई० को स्वामी जी की मृत्यु हो गई।
मात्र उन्तालीस वर्ष के जीवन काल में स्वामी जी ने जो उल्लेखनीय कार्य किए युगों युगों तक स्मरणीय रहेगा।
शिकागो स्थित सर्व धर्म सम्मेलन में 'जीरो' जैसे शब्द पर इतना ओजस्वी भाषण देकर इस देश की कीर्ति तथा गौरव को इक नयी दिशा दी थी। "मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों।" से सम्बोधन कर पूरी दुनिया को भारतीय संस्कृति से रूबरू करवाया।
स्वामी जी केवल संत ही नहीं अपितु महान देशभक्त और उत्कृष्ट विचारक भी थे। अमेरिका से लौट कर इन्होंने भारतवासियों का आह्वान कुछ इस प्रकार किया था, " नया भारत निकल पड़े मोची की दुकान से, भड़भूंजे के भाड़ से, कारखाने से, हाट से, बाजार से; निकल पड़े झाडि़यों, जंगलों, पहाड़ों, पर्वतों से।
रवींद्र नाथ ठाकुर ने स्वामी जी के विषय में कहा था, "यदि आप भारत को जानना चाहते हैं तो विवेकानंद को पढ़िए। उनमें आप सब कुछ सकरात्मक ही पायेंगे, नकरात्मक कुछ भी नहीं।"
"एक विचार लें और इसे अपनी जिंदगी का एकमात्र विचार बना लें। इसी विचार में सोचें, सपना देखें और इसी विचार पर जिएं। अपने मस्तिष्क दिमाग और रगों में यही एक विचार भर जाये। यही सफलता का रास्ता है। इसी तरह से बड़े बड़े आध्यात्मिक धर्म पुरुष बनते हैं।" -- स्वामी विवेकानंद।
लेखन : मिनी