शूरवीर कर्तव्य निष्ठ वह था परम शिष्य द्रोणाचार्य का, श्रीकृष्ण सखा, इन्द्रियविजित वह नायक था पाण्डव इतिहास का।
इतिहास के पन्ने अर्जुन की शूरता, धर्मनिष्ठा, कर्तव्यनिष्ठा तथा उदारता की कहानियों से भरे पड़े हैं। अर्जुन की यश और वीरता तीनों लोको में विदित थी। अर्जुन श्रीकृष्ण के परमप्रिय थे। इतिहास अर्जुन को पाण्डवों के नायक के रूप में वर्णित करता है।
अर्जुन महाराज पाण्डु तथा महारानी कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। इन्द्र के वरदान स्वरूप माता कुन्ती ने अर्जुन को प्राप्त किया था। अर्जुन ने गुरु द्रोणाचार्य से धनुर्विद्या का ज्ञान प्राप्त किया था। अर्जुन गुरु द्रोण के परमप्रिय शिष्य थे। अर्जुन ने हिमालय पर कठोर तपस्या की थी। अर्जुन की परीक्षा लेने के विचार से भगवान शिव किरात वेश में आये थे तत्पश्चात दोनों में भयंकर युद्ध हुआ। अर्जुन की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने अर्जुन को 'पाशुपतास्त्र' प्रदान किया। अर्जुन ने अग्नि से 'गांडीव धनुष' तथा 'अक्षय तूणीर' प्राप्त किया| गन्धर्व राज चित्रसेन ने नृत्य विद्या का भी ज्ञान प्राप्त किया था। जो कि अज्ञातवास के दौरान विराट नगर में 'भृंगला' नाम से राजा विराट के महल में नृत्य की शिक्षा देते थे।
भीष्म पितामह स्वयं कहते थे, 'वीरता, स्फूर्ति, ओज, तेज, शस्त्र कुशलता और अस्त्र ज्ञान में अर्जुन के समान कोई नही।'
अर्जुन राजा द्रुपद के स्वंवर की शर्त को पूरा कर द्रुपद कन्या द्रोपदी से विवाह किया था। तत्पश्चात माता की आज्ञानुसार पांचों भाइयों का विवाह द्रोपदी के साथ सम्पन्न हुआ। अर्जुन का दूसरा विवाह श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ सम्पन्न हुआ था। वीर अभिमन्यु अर्जुन तथा सुभद्रा के ही पुत्र थे। विभिन्न ग्रंथों में अर्जुन के और भी कई विवाह के उल्लेख मिलते हैं।
लेखन : मिनी