जिसके नेत्र खुले हुए कमल के समान देदीप्यमान थे, भौंहे चन्द्रमा के समान वक्र थीं तथा उसका वर्ण श्यामल था। अग्निकुण्ड से उत्पन्न याज्ञशयनी द्रुपद कन्या द्रोपदी जिसका जन्म ही क्षत्रियों के नाश के लिए हुआ था। द्रोपदी पांचाल नरेश राजा द्रुपद की कन्या थी। जो कि यज्ञ कुण्ड से उत्पन्न हुई थी। राजा द्रुपद को अपनी कन्या के लिए एक ऐसे वर की तलाश थी जिसकी कीर्ति और यश का गुणगान तीनों लोको में हो, जो कुशल तथा सर्वश्रेष्ठ योद्धा हो। राजा द्रुपद ने अपनी पुत्री के विवाह के लिए एक स्वयंवर का आयोजन किया जिसकी शर्त यह थी कि खौलते कड़ाहे में देखकर जो कोई मछली की आंख भेदने में सफलता प्राप्त करेगा उसी से वह अपनी पुत्री का विवाह करेंगे। शर्त अनुसार ब्राह्मण वेष धारी अर्जुन योग्य वर साबित हुए। परन्तु माता कुन्ती के आज्ञावश पाचों पाण्डवों को द्रोपदी से विवाह करना पड़ा।
द्रोपदी को महाभारत युद्ध का सबसे बड़ा कारण माना जाता है, कि द्रुपद कन्या की वजह से कुरूक्षेत्र का मैदान रक्तरंजित हुआ। इसे समाज का नियम कह लें या लोगों की कुंठित विचारधारा जो कि इक स्त्री को सदैव दोषी मान लिया जाता है। पुरूष के नियत पर किसी प्रकार का कोई प्रश्नचिन्ह नहीं होता। और स्त्री को नाश का कारण बता दिया जाता है। हस्तिनापुर के भरी सभा में द्रोपदी को अपमानित कर दु:शासन ने द्रोपदी को निर्वस्त्र करना चाहा, लेकिन भगवान की कृपा से वह अपने कुकृत्य में सफल न हो सका, और सब हैरान थे,
नारी बीच साड़ी है, कि साड़ी बीच नारी है।
साड़ी की ही नारी है, कि नारी ही साड़ी है।।
इन सब के बावजूद सभा में मौजूद सभी श्रेष्ठजन, विद्वान जन सिर्फ और सिर्फ मौन थे। किसी के प्रति घृणा और ईष्या की भावना इतनी बलवान कि उसकी पत्नी को भरी सभा में बेइज़्जत करें। जैसा कि धृतराष्ट्र पुत्रों ने किया और अपने नाश को स्वयं आमंत्रित किया।
द्रोपदी के पांच पुत्र थे जो कि पांच पाण्डवों की संतान थे। द्रोपदी धर्मनिष्ठ, कर्तव्यनिष्ठ, पतिव्रता नारी थी। जिसे अपने जीवन में अपने जीवन में अनेक कष्टों का भोगी बनना पड़ा। अंतिम यात्रा में पांचों पाण्डवों संग हिमालय की तरफ जाते वक़्त मेरू पर्वत के आसपास द्रोपदी की मृत्यु हो गयी।
लेखन : मिनी