Showing posts with label Kunti and. Show all posts
Showing posts with label Kunti and. Show all posts

Monday, January 25, 2021

जानते हैं महारानी कुन्ती और गांधारी के विषय में।

यदुवंशी राजा शूरसेन की पृथा नामक सुन्दर कन्या थी जिसे उन्होंने अपनी बुआ के सन्तान हीन पुत्र कुन्तिभोज को गोद दे दिया था।  पृथा (कुन्ती) के विवाह योग्य होने पर कुन्तिभोज ने उसका स्वयंवर रचाया।  उस स्वयंवर में कुन्ती ने वीरवर पाण्डु को अपने वर के रूप में चुना।  कुन्ती को महर्षि दुर्वासा ने आशीर्वाद दिया था कि ,'वो किसी भी देवता का आह्वान करके पुत्र की प्राप्ति कर सकती हैं। ' जब महारानी कुन्ती को महाराज पाण्डु के श्राप के बारे में पता चला तो उन्होंने अपने वरदान का उपयोग कर पुत्र की प्राप्ति की। युधिष्ठिर, भीम तथा अर्जुन महारानी कुन्ती के ही पुत्र थे। 

महारानी गांधारी गांधार नरेश की गुणवान पुत्री थी।  महारानी गांधारी को सौ पुत्रों की माता होने का वरदान प्राप्त था। 

जब महामहिम भीष्म को गांधारी और उनके वरदान के विषय में ज्ञात हुआ तो उन्होंने यह निश्चय किया कि यह कन्या धृतराष्ट्र के लिए उपर्युक्त रहेगी और उन्होंने गांधारी का विवाह धृतराष्ट्र के साथ सम्पन्न कराया। 

गांधारी को जब इस तथ्य का पता चला कि उनके होने वाले पति जन्मान्ध है तो उन्होंने स्वयं अपने आंखों पर पट्टी बाँध कर अपने पत्नी धर्म का पालन किया| गांधारी के इस त्याग के फलस्वरूप उन्हें तेज की प्राप्ति हुई जिसका उपयोग उन्होंने महाभारत युद्ध में दुर्योधन की रक्षा हेतु किया था पर मूर्ख दुर्योधन माता की आज्ञा का उल्लंघन करते हुये मधुसूदन के भ्रम जाल में फंस गया। 

वरदान के फलस्वरूप महारानी गांधारी को सौ पुत्रों की प्राप्ति हुई इनकी एक कन्या भी थी जिसका विवाह सिन्धु राज  के साथ सम्पन्न हुआ था। महारानी गांधारी के सौ पुत्र तो थे पर अफसोस उन्हें धर्म और नीति का तनिक भी ज्ञान था।  वे सभी अपने वंश के नाश का कारण बनें। 

लेखन : मिनी