आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा का विशेष पर्व मनाया जाता है। इस बार यह गुरु पूर्णिमा 27 जुलाई यानी शनिवार को है। इस पूर्णिमा के दिन शिष्य अपने गुरु की पूजा करते हैं और उन्हें उपहार भी देते हैं। भारतीय संस्कृति में गुरु देवता को तुल्य माना गया है। गुरु पूर्णिमा के विशेष अवसर पर हम आपको महर्षि वेद व्यास के बारे में बताते हैं। बहुत ही कम लोगों को उनके पिता के बारे में और किन परिस्थितियों में उनका जन्म हुआ, इस बारे में जानकारी है।
महर्षि वेदव्यास का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को लगभग 3000 ई. पूर्व में हुआ था। उनके सम्मान में ही हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा मनाया जाता है। वेद, उपनिषद और पुराणों का प्रणयन करने वाले वेद व्यास जी को समस्त मानव जाति का गुरु माना जाता है। बहुत से लोग इस दिन व्यास जी के चित्र का पूजन और उनके द्वारा रचित ग्रंथों का अध्ययन करते हैं। बहुत से मठों और आश्रमों में लोग ब्रह्मलीन संतों की मूर्ति या समाधी की पूजा करते हैं।
श्री वेदव्यासजी ईश्वर के अंशावतार माने जाते हैं। उनका जन्म द्वीप में हुआ था, अत: उनका नाम द्वैपायन पड़ा। उनका शरीर श्याम वर्ण का था, इसलिए वे कृष्ण द्वैपायन भी कहलाये। वेदों के विभाग करने के कारण उन्हें वेदव्यास कहा जाने लगा। बद्रीवन में निवास करने के कारण बादरायण कहलाये।
वे महामुनि पराशर के पुत्र थे। उनकी माता का नाम सत्यवती था। उन्होंने अपनी माता सत्यवती को यह वचन दिया था कि जब कभी बड़ा संकट होगा, वे याद करते ही उनके सामने उपस्थित हो जायेंगे । सत्यवती के सामने अब अपने कुल और वंश के उत्तराधिकार की रक्षा का भार आ खड़ा हुआ था।
उन्होंने विचित्रवीर्य की विधवा अम्बिका और छोटी रानी अम्बालिका को वेदव्यास से नियोग द्वारा पुत्र उत्पन्न करने हेतु तैयार किया। व्यासजी ने मां से कहा: ”सन्तान प्राप्ति के समय मेरे काले-कलूटे घनी जटाओं वाले तथा भयभीत कर देने वाले रूप तथा गन्ध से दोनों भयभीत न हों, अन्यथा इसका दुष्परिणाम होगा।
सहज रहने वाले को ही योग्य सन्तान मिलेगी। बड़ी रानी अम्बिका को यह समझाने के बाद भी वह उनके रूप-रंग, गन्ध को देखकर इतनी भयभीत हुई कि उसने आखें बन्द कर लीं । व्यासजी ने माता सत्यवती से कहा: ”बलवान, विद्वान् होने पर भी उत्पन्न पुत्र अन्धा होगा।” व्यासजी की भविष्यवाणी सत्य साबित हुई।
धृतराष्ट्र अन्धे पैदा हुए। अब अन्धे पुत्र से शासन तो चलाया नहीं जा सकता। अत: सत्यवती ने व्यासजी से अम्बालिका द्वारा दूसरे पुत्र की कामना की। अम्बालिका ने व्यासजी से समागम के समय आखें तो बन्द नहीं कीं, किन्तु उनके रूप-रंग को देखकर उसका शरीर पीला पड़ गया।
व्यासजी ने भविष्यवाणी की कि अब पुत्र पाए वर्ण का होगा। समय आने पर अम्बालिका ने एक पुत्र को जन्म दिया, जो आगे चलकर पाण्डु के नाम से प्रसिद्ध हुआ। दोनों पुत्रों को दोषयुक्त देखकर सत्यवती ने तीसरे पुत्र की कामना की। अब सत्यवती ने एक दासी को व्यासजी के पास भेजा।
दासी ने प्रसन्नतापूर्वक न केवल वेदव्यासजी की सेवा की, वरन् प्रसन्नतापूर्वक उनसे समागम किया। अत: वेदव्यासजी की भविष्यवाणी के अनुसार विद्वान, धर्मात्मा पुत्र विदुर का जन्म हुआ। गांधारी के सौ पुत्रों को जन्म देने के पीछे का रहस्य वेदव्यासजी को ही मालूम था।
पाण्डु की मृत्यु के बाद श्राद्ध के समय वेदव्यासजी ने माता सत्यवती के सामने यह भविष्यवाणी की कि सुख का समय समाप्त हो गयाहै । कौरवों के संहार को तुम देख न पाओगी । अत: तुम वन चली जाओ। सत्यवती को अपने पुत्र व्यास की अलौकिक शक्ति पर विश्वास था।
जब वह वन जाने लगीं तो उनके साथ उनकी दोनों वधुएं भी चलीं गयीं। वेदव्यासजी ने द्रौपदी के पूर्वजन्म की कथा दुपद को यथावत दिखलायी, जिससे वे उनके परमभक्त बन गये। वेदव्यासजी ने अपनी अलौकिक शक्ति से धृतराष्ट्र को यह सचेत करते हुए फटकार लगायी कि तुम अपने पुत्रों को रोको, अन्यथा समस्त कुल का नाश होगा।
उन्होंने कौरव पुत्रों की मृत्यु के रहस्य को भी समय से पहले बता दिया था। यह भी कहा जाता है कि जब महाभारत के सोलह वर्षो बाद तपस्यारत धृतराष्ट्र अपने मृत पुत्रों, परिजनों, सम्बन्धियों का शोक नहीं भूल पाये और जब युधिष्ठिर भी सपरिवार वन पहुंचे, तो उनकी इच्छानुसार व्यासजी ने महान तपस्या शक्ति से गंगाजल में उतरकर मृतात्माओं का आवाहन किया।
धृतराष्ट्र के सौ पुत्र, द्रौपदी के पांच पुत्र और अन्य सम्बन्धियों को उनके पूर्व स्वरूप में लाकर उनके सामने खड़ा कर दिया। एक रात पूरी तरह से सबका मिलनोत्सव करवाया, जिसमें सबका एक-दूसरे के प्रति मनोमालिन्य और द्वेषभाव दूर हो गया।
महर्षि वेदव्यासजी ने 18 पुराणों की रचना की, जो इस प्रकार हैं:
1. ब्रह्मा पुराण ।
2. पद्मा पुराण ।
3. विष्णु पुराण ।
4. शिव पुराण ।
5. श्रीमदभागवत पुराण ।
6. नारद पुराण ।
7. अग्नि पुराण ।
8. ब्रह्म वैवर्त्त पुराण ।
9. वराह पुराण ।
10. स्कन्द पुराण ।
11. मार्कण्डेय पुरण ।
12. वामन पुराण ।
13. कूर्म पुराण ।
14. मत्स्य पुराण ।
15. गरूड़ पुराण ।
16.ब्रहमण्ड पुराण ।
17. लिंग पुराण ।
18. भविष्य पुराण ।
कलयुग के प्रभाव से महाभारत में सत्य और असत्य के बीच जो द्वन्ह चला, उसमें सत्य की विजय बताकर वेदव्यासजी ने इस सत्य का भी प्रतिपादन किया कि असत्य को हमेशा ही पराजय का मुंह देखना पड़ता है । जब-जब धर्म की हानि होगी या धर्म संकट में होगा, आसुरी प्रवृत्तियां बढ़ती जायेंगी, तब-तब महापुरुषों और अवतारों का अवतरण होता रहेगा।
साधुओं और सज्जनों को अन्याय और अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए अशान्त और मोह से ग्रस्त लोगों को शान्ति दिलाने के लिए भी वेदव्यास जैसे तत्त्वज्ञानियों का जन्म होता रहेगा। वे सच्चे अर्थो में जगदगुरु थे।
लेखन : चांदनी